किसी भी देश की आतंरिक सुरक्षा वहा के सरकार की सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों में से एक होती है, जिसके लिए लगभग सभी देशो के पास अपनी अपनी ख़ुफ़िया एजेन्सिया होती है |
इन ख़ुफ़िया एजेंसियो का काम गोपनीय ढंग से उन सारे ऑपरेशन्स को अंज़ाम देना होता है जिनसे किसी भी देश की आतंरिक सुरक्षा को खतरा हो |
भारत के पास भी एक ऐसी ही खुफ़िआ एजेंसी है जिसका नाम है रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (Research & Analysis Wing), जिसे आमतौर पर रॉ के नाम से जाना जाता है | बड़े से बड़े गोपनीय ऑपरेशन को कैसे अंज़ाम दिया जाये इसे रॉ से बेहतर कोई नहीं जनता और ये एजेंसी देश के लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार रहती है |
भारत की ये ख़ुफ़िया एजेंसी दुश्मन देश को बिना किसी करवाई की भनक लगे, किसी भी कारनामे को अंज़ाम दे सकती है |
दोस्तों आज के इस आर्टिकल में मै आपको रॉ एजेंसी के एक ऐसे खतरनाक जासूस ब्लैक टाइगर उर्फ़ रविंद्र कौशिक की कहानी से रूबरू कराऊंगा जिसके बारे में जानकर आपके रोंगटे खड़े हो जायेगें |
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दोस्तों रविंद्र कौशिक को यु तो रियल लाइफ जेम्स बांड कहा जाता है लेकिन इनकी कहानी फिल्मो से थोड़ी अलग है |
ये कहानी है एक ऐसे भारतीय जाबांज़ जासूस की जो पाकिस्तान जाकर पाकिस्तानी सेना में भर्ती होकर मेज़र की रैंक तक पहुंच गया था, लेकिन बदकिस्मती से कुछ ऐसा हुआ जिसने सबके होश उड़ा दिये |
11 अप्रैल 1952 को राजसथा ने श्रीगंगानगर में पैदा हुए रविन्द्र कौशिक बचपन से ही एक्टर बनना चाहते थे | अपने इस एक्टर बनने के ख्वाब को पूरा करने ले लिए बड़े होकर इन्होने थियेटर ज्वाइन कर लिया | एक बार जो ये लखनऊ में थियेटर कर रहे थे तब रॉ के अधिकारियो की नज़र उन पड़ी फिर अधिकारियो ने इनके सामने जासूस बनकर पाकिस्तान जाने का प्रस्ताव रखा, जिसे इन्होने स्वीकार कर लिया |
फिर क्या था रॉ ने इनकी ट्रेनिंग शुरू की, पाकिस्तान जाने से पहले दिल्ली में करीब दो साल इनकी ट्रेनिंग चली और पाकिस्तान में किसी भी परेशानी से बचने के लिए इनका खतना किया गया, इन्हे पाकिस्तान की भाषा उर्दू और इस्लाम के बारे में बहुत सी जानकारिया दी गयी |
ट्रेनिंग समाप्त होने के बाद मात्र 23 साल की उम्र में इन्हे पाकिस्तान भेज दिया गया और वह पर इनका नाम रविंद्र कौशिक से बदलकर नवी अहमद शाकिर रख दिया गया | अब जैसा की रविंद्र कौशिक के गांव में पंजाबी बोली जाती है और पाकिस्तान के अधिकतर गावों में भी पंजाबी ही बोली जाती है इसलिए रविंद्र को पाकिस्तान में सेट होने में ज्यादा वक़्त नहीं लगा |
कुछ ही समय बाद रविंद्र ने पाकिस्तान की नागरिकता ले ली और एक यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेकर लॉ से ग्रेजुएशन किया |
समय बीतता गया और पढाई ख़त्म होने के बाद रविंद्र कौशिक पाकिस्तानी सेना में भर्ती होकर मेज़र की रैंक तक पहुंच गये और इसी बीच उन्होंने वहां पर एक आर्मी अफ़सर की लड़की अमानत से शादी की और एक बेटी के पिता भी बन गए |
रविंद्र कौशिक ने 1979 से लेकर 1983 तक पाकिस्तानी सेना और सरकार से जुडी कई अहम् जानकारिया भारत पहुंचे, जिसकी मदद से न केवल भारत सरकार ने कई आतंकवादी गतिविधियों को रोका बल्कि पाकिस्तान के कई ख़तरनाक मंसूबो को नाकामयाब भी किया |
बाद में रॉ ने रविंद्र कौशिक के काम से प्रभावित होकर इन्हे “ब्लैक टाइगर” के ख़िताब से नवाज़ा, सब कुछ अच्छा चल रहा था फिर आया 1983 का वो मनहूस साल जो रविंद्र कौशिक के लिए सबसे खतरनाक साबित हुआ |
दरअसल हुआ ये की 1983 में रॉ ने रविंद्र कौशिक से मिलने के लिए एक दूसरे एजेंट को पाकिस्तान भेजा, लेकिन बदकिस्मती से वो पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी ISI के हत्थे चढ़ गया | कई दिनों तक ख़ौफ़नाक यातनाये देने के बाद इस एजेंट ने रविंद्र कौशिक के बारे में सब कुछ बता दिया |
फिर मरने के दर से रविंद्रनाथ कौशिक ने पाकिस्तान से बच निकलने के कई असफल प्रयास किये लेकिंग भारत सरकार से कोई मदद न मिलने के कारण रविन्द कौशिक को गिरफ़्तार करके पाकिस्तान की जेल में दल दिया गया | फिर पाकिस्तानी सेना ने रविंद्र को लालच और लम्बी यातना देकर भारत की कुछः अहम् जानकारिया निकालनी चाही, लेकिन कठोर यातनाओ के बाद में रविंद्र ने भारत की कोई भी ख़ुफ़िया जानकारी देने से मना कर दिया |
फिर 1985 में रविंद्र को मौत की सजा सुनाई गयी, जिसे बाद में पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने उम्रकैद में बदल दिया, अपने उम्रकैद के दौरान रविंद्र ने जेल से अपने परिवार वालो को कई चिट्ठिया लिखी, जिसमे वो पाकिस्तान में होने वाले अपने अत्याचारों की कहानी बताने थे | एक खत में रविंद्र ने अपने पिता से ये एक भी पूछा की क्या भारत जैसे मुल्क के लिए कुर्बानी देने वालो को यही मिलता है ?
पाकिस्तान के मियांवाली जेल में 16 साल सजा काटने के बाद 2001 में रविंद्र कौशिक की मृत्यु हो गयी और उनकी मौत के बाद भारत सरकार ने उनका शव तक लेने से मना कर दिया |
भारत के लिए अपनी ज़िन्दगी कुर्बान करने वाले रविंद्र कौशिक को मरने के बाद अपने ही देश की मिट्टी तक नसीब नहीं हुयी |
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